''राजनीति और क्रिकेट में कभी भी कुछ भी हो सकता है.'' यह बयान बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने कुछ दिन
पहले महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात पर दिया था.
उनके ये शब्द तब सच
साबित हो गए जब महाराष्ट्र सहित देश की अधिकांश जनता शिव सेना प्रमुख उद्धव
ठाकरे को राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनने की ख़बरें सुनते हुए सोने के लिए गई लेकिन सुबह उठी तो बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की
शपथ ले चुके थे और उनके साथ एनसीपी के प्रमुख नेता अजित पवार ने उप
मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.कुछ पल के लिए आम जनता ही क्या राजनीतिक जगत की हर ख़बर सूंघने का दम भरने वाले बड़े पत्रकार और कई नेता अचंभे में थे.
धीरे-धीरे ख़बरें खुलने लगीं और मालूम चला कि रात ही रात में बीजेपी ने अजित पवार के समर्थन से सरकार बनाने की पेशकश की.
इसके बाद राज्यपाल ने प्रदेश में जारी राष्ट्रपति शासन को हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की और सुबह तड़के देवेंद्र फडणवीस को राज्य की कमान सौंप दी गई.
रात भर में कैसे पलटी बाजी
महाराष्ट्र के इतिहास में 22 नवंबर की रात हमेशा के लिए दर्ज हो गई. पूरी रात महाराष्ट्र की सत्ता की चाभी एक गठबंधन से दूसरे गठबंधन में किस तरह निकली या निकाली गई, यह अपने-आप में बेहद दिलचस्प है.मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक ये पूरा खेल 22 नवंबर को देर शाम शुरू हुआ जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार करीब 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास पहुंचे.
इसके बाद देर रात देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल से मुलाक़ात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया. उन्होंने अपने साथ एनसीपी के विधायकों के समर्थन की बात बताई.
इसके बाद मामला पूरी तरह राजधानी दिल्ली शिफ्ट हो गया. राज्यपाल कोश्यारी ने केंद्र को इस पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया, इसके बाद राष्ट्रपति भवन तक जानकारी भेजी गई.
शनिवार यानी 23 नवंबर की सुबह 5.47 मिनट पर केंद्र ने महाराष्ट्र में जारी राष्ट्रपति शासन को हटाने की बात कही. महाराष्ट्र में राज्यपाल ने 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लगा दिया था.
राष्ट्रपति शासन हटते ही महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया और फिर सुबह करीब 7.30 बजे देवेंद्र फडणवीस ने राजभवन में शपथ ग्रहण कर ली.
जिस तरह से बीजेपी ने अजित पवार के समर्थन से रात ही रात में सरकार बनाई उसे विपक्षी दल असंवैधानिक बता रहे हैं.
कांग्रेस सांसद अहमद पटेल ने कहा, "महाराष्ट्र के इतिहास में आज का दिन काला धब्बा है. सब कुछ सुबह-सुबह और जल्दबाज़ी में किया गया. कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है. इससे ज़्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता."
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस मामले पर अपनी मंजूरी पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए लिखा, ''संविधान के आर्टिकल 356 के खण्ड दो में दिए गए अधिकारों के तहत, मैं राम नाथ कोविंद, भारत का राष्ट्रपति, मेरे द्वारा 12 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र में लगाए गए राष्ट्रपति शासन को, 23 नवंबर 2019 को हटाए जाने का आदेश देता हूं.''
महाराष्ट्र की राजनीति पर नज़र रखने वाले संविधान विशेषज्ञ उल्हास बापत मानते हैं कि अगर संविधान के नियमों के हिसाब से देखें तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं हुआ है, लेकिन नैतिकता के आधार पर यह कोई अच्छा उदाहरण नहीं है.
उल्हास बापत कहते हैं, ''राज्यपाल के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं, उन्हें अगर लगता है कि कोई दल सरकार बनाने के लिए बहुमत साबित कर सकता है तो वह उसे निमंत्रण भेज सकते हैं. लेकिन बीजेपी पहले ही राज्यपाल के सामने सरकार ना बनाने की बात कह चुकी थी ऐसे में उन्हें दोबारा सरकार बनाने का मौका देना नैतिकता के आधार पर सही नहीं है.''
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