पाकिस्तान बर्मिंघम में 26 जून को न्यूज़ीलैंड के साथ खेलेगा. पाकिस्तान के लिए यह सबसे मुश्किल मुक़ाबला है. न्यूज़ीलैंड ने अब तक सारे मैच जीते
हैं बस भारत से मैच बारिश के कारण नहीं हो पाया था. पाकिस्तान को
न्यूज़ीलैंड को हराने के लिए बेहतरीन खेलना होगा.
पाकिस्तान के बाक़ी दो मैच लीड्स में अफ़ग़ानिस्तान से और लॉर्ड्स में बांग्लादेश से है. अफ़ग़ानिस्तान को पाकिस्तान हरा सकता है लेकिन पाकिस्तान वॉर्मअप मैच में अफ़ग़ानिस्तान से हार चुका है. पाकिस्तान का आख़िरी मैच बांग्लादेश से है.
बांग्लादेश की टीम भी बढ़िया खेल रही है और उसने 17 जून को वेस्टइंडीज़ को 322 रन चेज़ कर हराया है. ऐसे में पाकिस्तान के लिए बांग्लादेश को हराना भी आसान नहीं है.
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वजह ये थी कि तत्कालीन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे पी नड्डा के नाम पर लोग अटकलें लगा रहे थे. वहीं नड्डा भी मुख्यमंत्री पद की आस लगाए हुए थे.
हालांकि धूमल के लिए मौका हाथ से निकल गया क्योंकि वो विधानसभा चुनाव हार गए लेकिन नड्डा के लिए अब भी दिल्ली दूर थी.
नड्डा कैंप के ही जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया गया जो पांच बार विधानसभा चुनाव जीतते आ रहे थे. नड्डा ने भी अपनी मंशा के बारे में पार्टी हाईकमान को पता नहीं लगने दिया.
ये वो वक़्त भी था जब प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने नड्डा को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उनके संगठनात्मक कौशल को लोकसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश में इस्तेमाल करने का सोचा.
और 2019 के नतीजों में उत्तर प्रदेश से बीजेपी को 62 सीटें मिली और एक बार फिर नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत मिला.
लेकिन नड्डा का नाम मोदी की नई कैबिनेट लिस्ट में नहीं आया और उनके बजाय हिमाचल प्रदेश से चार बार के सांसद अनुराग ठाकुर को वित्त राज्यमंत्री बनाया गया.
जो लोग इस बात पर हैरान थे कि उत्तर प्रदेश के बढ़िया नतीजों के बाद भी नड्डा को कैबिनेट से बाहर क्यों रखा गया, उन्हें सोमवार को जवाब मिल गया. अब उन्हें ऐसा पद मिला है जिससे मान लेना चाहिए कि बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व में वो शक्तिशाली नेता हैं.
जल्द ही महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और नड्डा का काम संगठन में पार्टी के लिए और समर्थक जुटाना है और उसके लिए भी जिसे अमित शाह 'कांग्रेस मुक्त भारत' कहते हैं.
नड्डा के संगठनात्मक कौशल से विपक्ष को चिंतित होना चाहिए. ख़ासकर पश्चिम बंगाल और केरल में. कश्मीर पर उनकी समझ भी उनकी रणनीति में मदद करेगी.
सोमवार को छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश के 58 साल के नेता जेपी नड्डा बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर चुने गये.
बीजेपी ने कुछ दिन पहले ही तय किया था कि कैबिनेट में नंबर दो मंत्री अमित शाह महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनावों तक पार्टी अध्यक्ष रहेंगे.
लेकिन पार्टी की संसदीय बोर्ड की मीटिंग में नड्डा का नाम अध्यक्ष पद के लिए चुना गया. ये बात उन नेताओं के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है जो चुपचाप पब्लिसिटी से दूर अपना काम करते रहते हैं.
बीजेपी में उन्हें बड़ा रणनीतिकार माना जाता है और वे अमित शाह के भी ख़ास हैं. वे खुद मानते हैं, "मैंने अपने करियर में किसी पोस्ट के लिए हाथ-पैर नहीं मारे. जो भी काम मेरे वरिष्ठ नेताओं ने मुझे दिया, मैंने पूरी लगन के साथ किया. मैं अपने प्रचार में भी विश्वास नहीं करता."
हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सत्ती नड्डा की विनम्रता को उनकी सबसे बड़ी खूबी बताते हैं. वे कहते हैं, "मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी मैंने उनको परेशान नहीं देखा. अपने काम को पूरा करते हैं और डेडलाइन से पहले काम करने के लिए जाने जाते हैं. उनका व्यक्तित्व भी काफ़ी आकर्षक है और उनका भाषण भी."
नड्डा ने पार्टी में अपनी पूरी भूमिका निभाई है, फिर चाहे उनका रोल 1983-84 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एबीवीपी कार्यकर्ता का हो, चाहे 2014-15 में कैबिनेट मंत्री का हो या बीजेपी के संसदीय बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी का.
पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
पाकिस्तान के बाक़ी दो मैच लीड्स में अफ़ग़ानिस्तान से और लॉर्ड्स में बांग्लादेश से है. अफ़ग़ानिस्तान को पाकिस्तान हरा सकता है लेकिन पाकिस्तान वॉर्मअप मैच में अफ़ग़ानिस्तान से हार चुका है. पाकिस्तान का आख़िरी मैच बांग्लादेश से है.
बांग्लादेश की टीम भी बढ़िया खेल रही है और उसने 17 जून को वेस्टइंडीज़ को 322 रन चेज़ कर हराया है. ऐसे में पाकिस्तान के लिए बांग्लादेश को हराना भी आसान नहीं है.
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2017 में जब हिमाचल प्रदेश के
विधानसभा चुनावों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रेम कुमार धूमल का
नाम मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए आगे किया तो बीजेपी में सुगबुगाहट
शुरू हो गई.
कई लोगों के लिए तो ये हैरानी भरा फैसला था. पार्टी के
युवा नेतृत्व में तो ये ज्यादा नज़र आ रहा था, जिसमें मुख्यमंत्री जयराम
ठाकुर भी शामिल थे. वजह ये थी कि तत्कालीन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे पी नड्डा के नाम पर लोग अटकलें लगा रहे थे. वहीं नड्डा भी मुख्यमंत्री पद की आस लगाए हुए थे.
हालांकि धूमल के लिए मौका हाथ से निकल गया क्योंकि वो विधानसभा चुनाव हार गए लेकिन नड्डा के लिए अब भी दिल्ली दूर थी.
नड्डा कैंप के ही जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया गया जो पांच बार विधानसभा चुनाव जीतते आ रहे थे. नड्डा ने भी अपनी मंशा के बारे में पार्टी हाईकमान को पता नहीं लगने दिया.
ये वो वक़्त भी था जब प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने नड्डा को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उनके संगठनात्मक कौशल को लोकसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश में इस्तेमाल करने का सोचा.
और 2019 के नतीजों में उत्तर प्रदेश से बीजेपी को 62 सीटें मिली और एक बार फिर नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत मिला.
लेकिन नड्डा का नाम मोदी की नई कैबिनेट लिस्ट में नहीं आया और उनके बजाय हिमाचल प्रदेश से चार बार के सांसद अनुराग ठाकुर को वित्त राज्यमंत्री बनाया गया.
जो लोग इस बात पर हैरान थे कि उत्तर प्रदेश के बढ़िया नतीजों के बाद भी नड्डा को कैबिनेट से बाहर क्यों रखा गया, उन्हें सोमवार को जवाब मिल गया. अब उन्हें ऐसा पद मिला है जिससे मान लेना चाहिए कि बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व में वो शक्तिशाली नेता हैं.
जल्द ही महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और नड्डा का काम संगठन में पार्टी के लिए और समर्थक जुटाना है और उसके लिए भी जिसे अमित शाह 'कांग्रेस मुक्त भारत' कहते हैं.
नड्डा के संगठनात्मक कौशल से विपक्ष को चिंतित होना चाहिए. ख़ासकर पश्चिम बंगाल और केरल में. कश्मीर पर उनकी समझ भी उनकी रणनीति में मदद करेगी.
सोमवार को छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश के 58 साल के नेता जेपी नड्डा बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर चुने गये.
बीजेपी ने कुछ दिन पहले ही तय किया था कि कैबिनेट में नंबर दो मंत्री अमित शाह महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनावों तक पार्टी अध्यक्ष रहेंगे.
लेकिन पार्टी की संसदीय बोर्ड की मीटिंग में नड्डा का नाम अध्यक्ष पद के लिए चुना गया. ये बात उन नेताओं के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है जो चुपचाप पब्लिसिटी से दूर अपना काम करते रहते हैं.
बीजेपी में उन्हें बड़ा रणनीतिकार माना जाता है और वे अमित शाह के भी ख़ास हैं. वे खुद मानते हैं, "मैंने अपने करियर में किसी पोस्ट के लिए हाथ-पैर नहीं मारे. जो भी काम मेरे वरिष्ठ नेताओं ने मुझे दिया, मैंने पूरी लगन के साथ किया. मैं अपने प्रचार में भी विश्वास नहीं करता."
हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सत्ती नड्डा की विनम्रता को उनकी सबसे बड़ी खूबी बताते हैं. वे कहते हैं, "मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी मैंने उनको परेशान नहीं देखा. अपने काम को पूरा करते हैं और डेडलाइन से पहले काम करने के लिए जाने जाते हैं. उनका व्यक्तित्व भी काफ़ी आकर्षक है और उनका भाषण भी."
नड्डा ने पार्टी में अपनी पूरी भूमिका निभाई है, फिर चाहे उनका रोल 1983-84 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एबीवीपी कार्यकर्ता का हो, चाहे 2014-15 में कैबिनेट मंत्री का हो या बीजेपी के संसदीय बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी का.
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